जिसमे संस्थान के प्रमुख गौरव रॉय, अमरंजय सिंह, चंद्रा रंगपी, डॉक्टर अमरेश कुमार,डॉक्टर धीरेन्द्र प्रभाकर,मयंक कुमार मोनू, इंद्रजीत कुमार, ने इस मुहिम में रक्त दान किए। इस मुहिम के पीछे मकसद विश्वभर में रक्तदान की अहमियत को समझाना था।लेकिन दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत (India) में इस मुहिम को उतना प्रोत्साहन नहीं मिल पाया जितना की अपेक्षित है।
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण लोगों में फैली भ्रांतियां हैं, जैसे कि रक्तदान से शरीर कमज़ोर हो जाता है और उस रक्त (Blood) की भरपाई होने में काफी समय लग जाता है। इतना ही नहीं ,यह गलतफहमी भी व्याप्त है कि नियमित खून देने से लोगों की रोगप्रतिकारक क्षमता कम हो जाने के कारण बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं। ऐसी मानसिकता के चलते रक्तदान लोगों के लिए हौवा बन गया है।
जिसका नाम सुनकर ही लोग सिहर उठते हैं।ऐसी ही भ्रांतियों को दूर करने के लिए ही संगठन ने "रक्त दान - महादान" की नींव रखी, ताकि लोग रक्तदान (Blood Donation) के महत्व को समझ, जरूरतमंदों की सहायता करें। थैलीसीमिया (Thalassemia) एक ऐसी बीमारी है जिसके चलते एक निश्चित अवधि के बाद खून बदलवाने की आवश्यकता पड़ती है
, यह अवधि मरीज की आयु पर आधारित होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, यह अवधि कम होने लगती है. इसी बात से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि थैलीसीमिया से ग्रसित रोगियों को हमारे और आपके द्वारा दान किए गए रक्त की कितनी जरूरत है।
रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है कि वह व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच और वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो, जिसे एचआईवी(HIV), हैपिटाइटिस “बी” या “सी” (Hepatitis B,C) जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है। एक बार में जो 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, उसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घण्टे के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है।
दूसरे, जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं , उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं। तीसरी अहम बात यह है कि हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित रेड ब्लड सेल (Red Blood Cell) तीन माह में स्वयं ही मर जाते हैं, लिहाजा प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है।
"रक्त दान -महादान "
No comments:
Post a Comment